शहर के खेल मैदानों के साथ राज्य बनने के बाद पिछले 14 सालों में जबदस्त खेल हुआ है। पुराने खिलाड़ियों के मुताबिक अब तक शहर के 20 से अधिक खेल मैदान खत्म हो गए हैं। जो बचे हैं, वे बड़े आयोजनों या प्रदर्शनी, मेलों की भेंट चढ़ गए हैं। खिलाड़ियों और कोच का कहना है कि प्रदेश का खेल विभाग केवल बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलप करने में लगा हुआ है।
पिछले 14 सालों में खिलाड़ियों के प्रैक्टिस के लिए एक भी मैदान डिवेलप नहीं किया गया । साइंस कॉलेज की जमीन अधिगृहीत कर खेल विभाग ने क्रिकेट के खेल मैदान को खत्म कर हॉकी स्टेडियम बना दिया है। वहीं सुभाष स्टेडियम, जो पिछले 50 सालों से हॉकी की नर्सरी के रूप में विख्यात है, पिछले 10 सालों से बदहाल है। उसे सुधारने के लिए योजना तो है, लेकिन उस पर अमल नहीं हो पाया है।
क्रिकेट का प्रमुख मैदान था
साइंस कॉलेज के क्रि केट मैदान को मिनी स्टेडियम की तरह डिवेलप किया गया था। राज्य बनने से पहले यह न केवल प्रतियोगिता आयोजन का प्रमुख स्थल था बल्कि शहर के कई कॉलेजों के छात्र यहां आकर अभ्यास करते थे। प्रदेश स्तर की इंटर स्कूल और कॉलेज प्रतियोगिताएं होती थीं। राज्य बनने के बाद लगातार यहां राज्योत्सव, व्यापार मेला, सामूहिक विवाह जैसे आयोजन होते रहे।
यहां डिवेलप की गई क्रि केट की पिच खोद डाली गई। क्रिकेट प्रेमियों ने कई बार इसे अपने खर्च पर सुधरवाया, लेकिन बार-बार के आयोजनों के चलते लोगों ने इस मैदान में खेलना बंद कर दिया। नईदुनिया टीम ने शुक्रवार को जायजा लिया। हॉकी स्टेडियम बनाने के लिए इस मैदान का बड़ा हिस्सा इस्तेमाल किया गया है। पैवेलियन और दर्शक दीर्घा खत्म हो चुका है। बचा हुआ मैदान का हिस्सा खुदा है और खेलने योग्य नहीं रह गया है। बताते हैं कि यहां अब एथलेटिक्स ट्रैक बनाने की तैयारी है।
सुभाष स्टेडियम बर्बाद
राज्य बनने के पहले हॉकी नर्सरी के नाम से विख्यात नेताजी सुभाष स्टेडियम अपने हाल पर आंसू बहा रहा है। जिस स्टेडियम में खेल कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी पैदा हुए, वहां 2003 के बाद से अब कोई खेल नहीं हो पा रहा है। वजह है मैदान का ठीक तरह से मेंटिनन्स नहीं हो पाना। राज्य बनने के बाद से यह स्टेडियम नगर निगम को दिया गया। निगम ने इसे नए सिरे से डिवेलप करने का प्लान तो बनाया, लेकिन उसे अमल में नहीं ला पाया।
मैदान उखड़ जाने के बाद धीरे-धीरे खिलाड़ियों ने वहां जाना बंद कर दिया। नईदुनिया टीम ने स्टेडियम का जायजा लिया तो पाया कि मैदान बुरी तरह खराब है, उबड़ खाबड़ है। स्टेडियम की दीवारें भी जर्जर हो चुकी हैं। पानी निकालने की व्यवस्था खराब होने से मैदान में कई जगह कीचड़ नजर आया। खेल से जुड़े जानकारों का कहना है कि खेल विभाग चाहता तो कम खर्चे में इस स्टेडियम को डिवेलप कर उसकी पुरानी प्रतिष्ठा लौटा सकता था।
खेल के लिए नहीं बचे मैदान
शहर में क्रिकेट, हॉकी और फुटबॉल जैसे खेल के अभ्यास के लिए मैदान नहीं बचे हैं। जेएन पांडेय स्कूल का मैदान खत्म हो चुका है। सप्रे स्कूल में सड़क चौड़ा कर आधा ग्राउंड खत्म कर दिया गया है। यहां फुटबॉल, वॉलीबॉल, बैडमिंटन, टेबल टेनिस जैसे गेम के लिए अलग व्यवस्था तो की गई, लेकिन क्रिकेट यहां से पूूरी तरह खत्म हो गया। पुराने खिलाड़ी बताते हैं कि कभी इन खेलों के अलावा यहां दिनभर कम से कम चार टीमें एक साथ क्रिकेट खेला करती थीं। आउटडोर स्टेडियम में चारों ओर एथलेटिक्स ट्रैक बनाकर बीच में पिच जरूर बनाई गई है, लेकिन एक समय में केवल एक मैच हो सकता है। गॉस मेमोरियल ग्राउंड भी मेला और विविध आयोजनों की भेंट चढ़ चुका है।
खेल विभाग को खेल से परहेज
प्रदेश का खेल विभाग जिसे प्रदेश में खिलाड़ियों को तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है, अपना काम छोड़कर इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलप कराने में लग गया है। विभाग के संचालक अशोक जुनेजा से संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन उन्होंने न तो फोन उठाया और न ही मैसेज का जवाब दिया। विभाग के दूसरे अफसरों से इस संबंध में चर्चा करने का प्रयास किया गया तो नाम न छापने की शर्त उन्होंने कहा कि उन्हें मीडिया को एंटरटेन नहीं करने की सख्त हिदायत है।
- शहर में खिलाड़ियों के अभ्यास के लिए मैदान नहीं रह गए हैं। साइंस कॉलेज ग्राउंड में अच्छी क्रिकेट पिच थी। सप्रे स्कूल, जेएन पांडेय स्कूल, टाटीबंध में एम्स की जगह, पीएचक्यू की जगह पर क्रिकेट और फुटबॉल खेले जाते थे। अब यहां कोई खेल नहीं हो रहा। सुभाष स्टेडियम में खेलकर बैरनबाजार, बैजनाथपारा, छोटापारा से कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी निकले, लेकिन अब तो यह नर्सरी भी उजड़ गई है।
मुस्ताक अली प्रधान, फुटबॉल एवं हॉकी कोच
- प्रदेश के खेल विभाग और उनसे जुड़े एसोसिएशनों में खेल को लेकर सोच की कमी दिखती है। जहां क्रिकेट होता था, वहां हॉकी स्टेडियम बना दिया। जहां हॉकी होती थी, उसे उजड़ने दिया, मैदानों को सड़कों और भवनों की भेंट चढ़ने दिया गया, लेकिन कोई उफ नहीं कर रहा। अब पूरा ध्यान बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर पर है, खिलाड़ियों के लिए मैदान डिवेलप करने पर नहीं। खेल के मैदान ही नहीं होंगे तो इन स्टेडियमों में कौन मैच खेलने जाएगा।
नौमान अकरम, पूर्व अंपायर एवं खिलाड़ी
- प्रदेश में खेलने वालों की कमी नहीं है और न ही सिखाने वाले अच्छे कोच की। कमी है तो खेल के लिए प्रैक्टिस मैदान की। क्रिकेट के लिए मैदान नहीं रह गया है। हॉकी की केवल बड़ी प्रतियोगिता हो सकती है, छोटे आयोजन के लिए मैदान नहीं रह गए हैं। राज्य शासन और खेल विभाग को खेल मैदानों को डिवेलप करने पर विचार करना चाहिए।
विनोद यादव, क्रिकेट कोच
पिछले 14 सालों में खिलाड़ियों के प्रैक्टिस के लिए एक भी मैदान डिवेलप नहीं किया गया । साइंस कॉलेज की जमीन अधिगृहीत कर खेल विभाग ने क्रिकेट के खेल मैदान को खत्म कर हॉकी स्टेडियम बना दिया है। वहीं सुभाष स्टेडियम, जो पिछले 50 सालों से हॉकी की नर्सरी के रूप में विख्यात है, पिछले 10 सालों से बदहाल है। उसे सुधारने के लिए योजना तो है, लेकिन उस पर अमल नहीं हो पाया है।
क्रिकेट का प्रमुख मैदान था
साइंस कॉलेज के क्रि केट मैदान को मिनी स्टेडियम की तरह डिवेलप किया गया था। राज्य बनने से पहले यह न केवल प्रतियोगिता आयोजन का प्रमुख स्थल था बल्कि शहर के कई कॉलेजों के छात्र यहां आकर अभ्यास करते थे। प्रदेश स्तर की इंटर स्कूल और कॉलेज प्रतियोगिताएं होती थीं। राज्य बनने के बाद लगातार यहां राज्योत्सव, व्यापार मेला, सामूहिक विवाह जैसे आयोजन होते रहे।
यहां डिवेलप की गई क्रि केट की पिच खोद डाली गई। क्रिकेट प्रेमियों ने कई बार इसे अपने खर्च पर सुधरवाया, लेकिन बार-बार के आयोजनों के चलते लोगों ने इस मैदान में खेलना बंद कर दिया। नईदुनिया टीम ने शुक्रवार को जायजा लिया। हॉकी स्टेडियम बनाने के लिए इस मैदान का बड़ा हिस्सा इस्तेमाल किया गया है। पैवेलियन और दर्शक दीर्घा खत्म हो चुका है। बचा हुआ मैदान का हिस्सा खुदा है और खेलने योग्य नहीं रह गया है। बताते हैं कि यहां अब एथलेटिक्स ट्रैक बनाने की तैयारी है।
सुभाष स्टेडियम बर्बाद
राज्य बनने के पहले हॉकी नर्सरी के नाम से विख्यात नेताजी सुभाष स्टेडियम अपने हाल पर आंसू बहा रहा है। जिस स्टेडियम में खेल कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी पैदा हुए, वहां 2003 के बाद से अब कोई खेल नहीं हो पा रहा है। वजह है मैदान का ठीक तरह से मेंटिनन्स नहीं हो पाना। राज्य बनने के बाद से यह स्टेडियम नगर निगम को दिया गया। निगम ने इसे नए सिरे से डिवेलप करने का प्लान तो बनाया, लेकिन उसे अमल में नहीं ला पाया।
मैदान उखड़ जाने के बाद धीरे-धीरे खिलाड़ियों ने वहां जाना बंद कर दिया। नईदुनिया टीम ने स्टेडियम का जायजा लिया तो पाया कि मैदान बुरी तरह खराब है, उबड़ खाबड़ है। स्टेडियम की दीवारें भी जर्जर हो चुकी हैं। पानी निकालने की व्यवस्था खराब होने से मैदान में कई जगह कीचड़ नजर आया। खेल से जुड़े जानकारों का कहना है कि खेल विभाग चाहता तो कम खर्चे में इस स्टेडियम को डिवेलप कर उसकी पुरानी प्रतिष्ठा लौटा सकता था।
खेल के लिए नहीं बचे मैदान
शहर में क्रिकेट, हॉकी और फुटबॉल जैसे खेल के अभ्यास के लिए मैदान नहीं बचे हैं। जेएन पांडेय स्कूल का मैदान खत्म हो चुका है। सप्रे स्कूल में सड़क चौड़ा कर आधा ग्राउंड खत्म कर दिया गया है। यहां फुटबॉल, वॉलीबॉल, बैडमिंटन, टेबल टेनिस जैसे गेम के लिए अलग व्यवस्था तो की गई, लेकिन क्रिकेट यहां से पूूरी तरह खत्म हो गया। पुराने खिलाड़ी बताते हैं कि कभी इन खेलों के अलावा यहां दिनभर कम से कम चार टीमें एक साथ क्रिकेट खेला करती थीं। आउटडोर स्टेडियम में चारों ओर एथलेटिक्स ट्रैक बनाकर बीच में पिच जरूर बनाई गई है, लेकिन एक समय में केवल एक मैच हो सकता है। गॉस मेमोरियल ग्राउंड भी मेला और विविध आयोजनों की भेंट चढ़ चुका है।
खेल विभाग को खेल से परहेज
प्रदेश का खेल विभाग जिसे प्रदेश में खिलाड़ियों को तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है, अपना काम छोड़कर इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलप कराने में लग गया है। विभाग के संचालक अशोक जुनेजा से संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन उन्होंने न तो फोन उठाया और न ही मैसेज का जवाब दिया। विभाग के दूसरे अफसरों से इस संबंध में चर्चा करने का प्रयास किया गया तो नाम न छापने की शर्त उन्होंने कहा कि उन्हें मीडिया को एंटरटेन नहीं करने की सख्त हिदायत है।
- शहर में खिलाड़ियों के अभ्यास के लिए मैदान नहीं रह गए हैं। साइंस कॉलेज ग्राउंड में अच्छी क्रिकेट पिच थी। सप्रे स्कूल, जेएन पांडेय स्कूल, टाटीबंध में एम्स की जगह, पीएचक्यू की जगह पर क्रिकेट और फुटबॉल खेले जाते थे। अब यहां कोई खेल नहीं हो रहा। सुभाष स्टेडियम में खेलकर बैरनबाजार, बैजनाथपारा, छोटापारा से कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी निकले, लेकिन अब तो यह नर्सरी भी उजड़ गई है।
मुस्ताक अली प्रधान, फुटबॉल एवं हॉकी कोच
- प्रदेश के खेल विभाग और उनसे जुड़े एसोसिएशनों में खेल को लेकर सोच की कमी दिखती है। जहां क्रिकेट होता था, वहां हॉकी स्टेडियम बना दिया। जहां हॉकी होती थी, उसे उजड़ने दिया, मैदानों को सड़कों और भवनों की भेंट चढ़ने दिया गया, लेकिन कोई उफ नहीं कर रहा। अब पूरा ध्यान बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर पर है, खिलाड़ियों के लिए मैदान डिवेलप करने पर नहीं। खेल के मैदान ही नहीं होंगे तो इन स्टेडियमों में कौन मैच खेलने जाएगा।
नौमान अकरम, पूर्व अंपायर एवं खिलाड़ी
- प्रदेश में खेलने वालों की कमी नहीं है और न ही सिखाने वाले अच्छे कोच की। कमी है तो खेल के लिए प्रैक्टिस मैदान की। क्रिकेट के लिए मैदान नहीं रह गया है। हॉकी की केवल बड़ी प्रतियोगिता हो सकती है, छोटे आयोजन के लिए मैदान नहीं रह गए हैं। राज्य शासन और खेल विभाग को खेल मैदानों को डिवेलप करने पर विचार करना चाहिए।
विनोद यादव, क्रिकेट कोच
Source: Chhattisgarh News & MP Hindi News
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