हिंदू मंदिरों में स्थापित साईं की मूर्तियां तोड़ना हमारा उद्देश्य नहीं है। साईं के नाम पर फैलाए जा रहे अंधविश्वास और व्यापार को रोकना चाहिए। छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री का बयान अफवाहों पर आधारित है, उन्हें तत्काल धर्मसंसद से माफी मांगनी चाहिए। नईदुनिया से खास मुलाकात में ज्योतिष व द्वारका शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने साईं विवाद पर खुलकर अपना पक्ष रखा। प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
-कवर्धा में आयोजित धर्मसंसद में साईं भक्त ने अपनी बात रखी तो उससे मारपीट क्यों की गई।
किसी से कोई मारपीट नहीं की गई। साईं भक्त को साईं भगवान हैं या नहीं इस मुद्दे पर बात रखने की अनुमति मिली थी, लेकिन वे मुद्दे से भटककर गोहत्या के मामले में संत समाज को चुनौती देने लगे। संतों ने उनकी चुनौती स्वीकार भी की। देश में मोदी के नेतृत्व में मजबूत सरकार है। हमें भरोसा है कि गोहत्या रोकने सरकार कड़े कदम उठाएगी, इसके लिए आंदोलन की जरूरत नहीं पड़ेगी।
-तो क्या धर्म के मामले में लोगों की आस्था पर आप अपनी इच्छा थोपेंगे।
ऐसा नहीं है। शंकराचार्य होने के नाते वेदशास्त्रों की सही बातों को लोगों तक पहुंचाना मेरा धर्म और कर्म दोनों है। दुनिया का ठेकेदार तो ईश्वर है। मैं ईश्वर का पता जानता हूं। ईश्वर ही कर्मों के अनुसार फल दते हैं, दूसरा कोई इतना सक्षम नहीं कि कर्मों का फल दे सके।
-धर्म आखिर है क्या।
धर्म एक परोक्ष विषय है जिसे प्रत्यक्ष रूप में नहीं समझा जा सकता। शास्त्रों से ही पता चल सकता है कि पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक क्या हैं। सामान्य व्यक्ति न तो वेद पढ़कर समझ सकते हैं न उसकी व्याख्या कर सकते हैं। उसके लिए आचार्य होना जरूरी है।
-आस्था व भक्ति क्या है।
आस्था व भक्ति अजर-अमर हैं। पार्थिव शरीर की आस्था नहीं की जाती। जीवित व्यक्ति का चरित्र देखा जा सकता है। जबकि मृतक की वाणी व चरित्र दोनों देखी जाती है तब आस्था व भक्ति उमड़ती है।
-धर्मसंसद में ऐसे निर्णय क्यों लिए गए जिन्हें असंसदीय कहा जा रहा है।
धर्मसंसद में कुल 6 प्रस्ताव पारित किए गए व यहां ऐसा कोई निर्णय नहीं हुआ जो संविधान के विरूद्घ हो। कुछ लोग धर्म संसद के मामले में अफवाह फैला रहे हैं। राज्य के गृहमंत्री का बयान भी अफवाहों पर आधारित है। वह अपना बयान वापस लें व धर्मसंसद से माफी मांगें।
-सनातन धर्म को मानने वालों के लिए धर्मसंसद के निर्णयों का क्या महत्व है।
धर्मसंसद में साधु-संतों तथा चारों पीठों के शंकराचार्यों की उपस्थिति में निर्णय लिए गए हैं। ये सनातन धर्मियों के लिए अंतिम निर्णय हैं। इसमें किंतु-परंतु का स्थान नहीं है। प्रजातंत्र में प्रजा ही राजा है। साधु संत धर्म का उपदेश दे चुके हैं। अब जनता को उसका पालन करना है।
-जन्मभूमि पर राम मंदिर नहीं बना तो क्या होगा।
भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर राम मंदिर बनकर रहेगा। परमात्मा के रूप में भगवान राम सनातन धर्मियों के आस्था के प्रतीक हैं।
-कुछ राजनेता आपका विरोध करते हैं। क्यों।
नेता धर्म और आचार्यों को अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं। लेकिन हम धर्म पर चलते हैं और किसी को अपना इस्तेमाल करने नहीं देते। इसीलिए विरोध होता है।
-साईं भक्त भी सम्मेलन करने वाले हैं, आप क्या कहेंगे।
धर्मससंद में साईं ट्रस्ट को आमंत्रित किया गया था। वे नहीं आए। ट्रस्ट के लोग स्पष्ट करें क्यों नहीं आए। साईं सम्मेलन में इतना विलंब क्यों कर रहे हैं।
-कवर्धा में आयोजित धर्मसंसद में साईं भक्त ने अपनी बात रखी तो उससे मारपीट क्यों की गई।
किसी से कोई मारपीट नहीं की गई। साईं भक्त को साईं भगवान हैं या नहीं इस मुद्दे पर बात रखने की अनुमति मिली थी, लेकिन वे मुद्दे से भटककर गोहत्या के मामले में संत समाज को चुनौती देने लगे। संतों ने उनकी चुनौती स्वीकार भी की। देश में मोदी के नेतृत्व में मजबूत सरकार है। हमें भरोसा है कि गोहत्या रोकने सरकार कड़े कदम उठाएगी, इसके लिए आंदोलन की जरूरत नहीं पड़ेगी।
-तो क्या धर्म के मामले में लोगों की आस्था पर आप अपनी इच्छा थोपेंगे।
ऐसा नहीं है। शंकराचार्य होने के नाते वेदशास्त्रों की सही बातों को लोगों तक पहुंचाना मेरा धर्म और कर्म दोनों है। दुनिया का ठेकेदार तो ईश्वर है। मैं ईश्वर का पता जानता हूं। ईश्वर ही कर्मों के अनुसार फल दते हैं, दूसरा कोई इतना सक्षम नहीं कि कर्मों का फल दे सके।
-धर्म आखिर है क्या।
धर्म एक परोक्ष विषय है जिसे प्रत्यक्ष रूप में नहीं समझा जा सकता। शास्त्रों से ही पता चल सकता है कि पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक क्या हैं। सामान्य व्यक्ति न तो वेद पढ़कर समझ सकते हैं न उसकी व्याख्या कर सकते हैं। उसके लिए आचार्य होना जरूरी है।
-आस्था व भक्ति क्या है।
आस्था व भक्ति अजर-अमर हैं। पार्थिव शरीर की आस्था नहीं की जाती। जीवित व्यक्ति का चरित्र देखा जा सकता है। जबकि मृतक की वाणी व चरित्र दोनों देखी जाती है तब आस्था व भक्ति उमड़ती है।
-धर्मसंसद में ऐसे निर्णय क्यों लिए गए जिन्हें असंसदीय कहा जा रहा है।
धर्मसंसद में कुल 6 प्रस्ताव पारित किए गए व यहां ऐसा कोई निर्णय नहीं हुआ जो संविधान के विरूद्घ हो। कुछ लोग धर्म संसद के मामले में अफवाह फैला रहे हैं। राज्य के गृहमंत्री का बयान भी अफवाहों पर आधारित है। वह अपना बयान वापस लें व धर्मसंसद से माफी मांगें।
-सनातन धर्म को मानने वालों के लिए धर्मसंसद के निर्णयों का क्या महत्व है।
धर्मसंसद में साधु-संतों तथा चारों पीठों के शंकराचार्यों की उपस्थिति में निर्णय लिए गए हैं। ये सनातन धर्मियों के लिए अंतिम निर्णय हैं। इसमें किंतु-परंतु का स्थान नहीं है। प्रजातंत्र में प्रजा ही राजा है। साधु संत धर्म का उपदेश दे चुके हैं। अब जनता को उसका पालन करना है।
-जन्मभूमि पर राम मंदिर नहीं बना तो क्या होगा।
भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर राम मंदिर बनकर रहेगा। परमात्मा के रूप में भगवान राम सनातन धर्मियों के आस्था के प्रतीक हैं।
-कुछ राजनेता आपका विरोध करते हैं। क्यों।
नेता धर्म और आचार्यों को अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं। लेकिन हम धर्म पर चलते हैं और किसी को अपना इस्तेमाल करने नहीं देते। इसीलिए विरोध होता है।
-साईं भक्त भी सम्मेलन करने वाले हैं, आप क्या कहेंगे।
धर्मससंद में साईं ट्रस्ट को आमंत्रित किया गया था। वे नहीं आए। ट्रस्ट के लोग स्पष्ट करें क्यों नहीं आए। साईं सम्मेलन में इतना विलंब क्यों कर रहे हैं।
Source: Chhattisgarh News & MP Hindi News
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